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Jagran junction Forum समाज की चिंतनधारा को सही सोच के साथ नारी मुक्ति आंदोलनो के साथ सामंजस्य बनाना ही होगा .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , जबलपुर
वर्ष में दो बार नवरात्र पर्व मनाने वाले हमारे समाज में , जिसमें सतत देवी आराधना , कन्या पूजन , व्रत , कठिन संकल्पों के साथ देवी पूजन , दुर्गम पर्वत शिखरो पर स्थापित धार्मिक देवी स्थलो की श्रद्धाभाव से पूर्ण यात्रायें की जाती हों , लड़कियो के प्रति बढ़ते अपराध , छेड़छाड़ की घटनायें ,बलात्कार ,कन्या भ्रूण हत्या आदि चिंतनीय हैं तथा पुरुष के उस राक्षसी स्वरूप की द्योतक हैं जिनका विनाश करने के लिये मातृशक्ति काली और दुर्गा का रूप रखकर प्रगट होती हैं .
क्या कारण है कि एक १६ वर्ष की लड़की भी ६ वर्ष के लड़के का हा् थाम कर स्वयं को गली से निकलते हुये महफूज समझने पर विवश है ? क्या कारण है कि स्वयं को कपड़ो में भी भीतर तक भेद रही निगाहो को समझते हुये भी अनभिज्ञ बने रहने का नाटक हर युवती को अपने कार्यालय , बाजार या सार्वजनिक स्थलो पर करना पड़ता है ? क्या कारण है कि महिला आयोग की अध्यक्ष को कहना पड़ रहा है कि सैक्सी शब्द प्रशंसात्मक है ? क्या कारण है कि विज्ञापनो में और इंटरनेट पर नारी स्वयं ही अनावृति की सारी हदें पार करने को बेताब है ? समय रहते समाज की चिंतनधारा को सही सोच के साथ नारी मुक्ति आंदोलनो के साथ सामंजस्य बनाना ही होगा . नारी शिक्षा का गहना पहन चुकी है , संवैधानिक , न्यायिक व शासकीय रूप से उसे बराबरी के अधिकार हैं . समाज में स्त्री को उसके योग्य स्थान मिल सकें इस दृष्टि से आरक्षण के प्रावधान भी किये जा रहे हैं . स्त्री स्वतंत्रता को अब कोई सामंती बंदिश नही रोक सकती . समाज को और स्वयं स्त्रियो को नारी मुक्ति और उन्मुक्त नारी के बारीक अंतर को समझते हुये , समाज के आधे हिस्से का पूरा अधिकार , पूरी स्वतंत्रता , निर्बाध अवसर देने ही होंगे . हम सबको यह मनन चिंतन करना जरुरी है कि हम अपने अपने घरो और अपने परिवेश से ही किस तरह इस यज्ञ में कितनी आहुति डाल सकते हैं .
मातृ शक्ति एक ऐसी शक्ति है जो दिव्य है , निःस्वार्थ है, मां जननी है .प्रकृति के सिवाय सृजन की क्षमता यदि किसी में है तो वह मातृशक्ति ही है . स्वयं देवता भी मां की शक्ति के सामने नतमस्तक होते हैं. शक्ति को ही मां, महादेवी,दुर्गा,माता आदि नाम दिए गए हैं.विचारणीय है कि सारे देवी स्थान दुरूह पर्वत चोटियो पर ही क्यो स्थापित किये गये हैं ? संसार में यह शक्ति स्त्री में ही निवास करती है. आज के पुरूष प्रधान समाज में स्त्री की इसी मातृ शक्ति के जागरण की आवश्यकता भी है. स्त्री में मातृ-शक्ति के जागरण से जहां उसमें आत्म विश्वास तथा गरिमा का उदय होता है वहीं पुरूष में भी नारी के प्रति आदर भाव उत्पन्न होता है. आम लोगो में यह भाव जगाने के लिये हमारी सांस्कृतिक परम्परा में कन्या-पूजन का विधान सभी उत्सवों में रखा गया है .
जब तक सामाजिक स्थितियां सर्वानुकूल नही होती , लोगो के मनोभावो में वैचारिक परिवर्तन नही आता , तब तक गुड़गांव जैसी घटनाओ को पुलिस नही रोक सकती . रात ८ का प्रतिबंध या समय समय पर कालेज स्कूल या पुलिस द्वारा कहा गया लड़कियो का ड्रैस कोड सही तरीका नही कहा जा सकता पर यह सब मजबूरी में लड़कियो की सुरक्षा हेतु उठाये गये सामयिक कदम ही कहे जा सकते हैं . स्थाई विकल्प समाज का चारित्रिक विकास , कन्याओ के प्रति श्रद्धा के नजरिये का और नैतिक मूल्यो की स्थापना मात्र हो सकता है .पराई स्त्री के प्रति मातृ भाव की स्थापना को पुरातन पंथी कहा जा सकता है पर वही सही है . जिसके लिये गंभीर दीर्घ कालिक प्रयास आवश्यक हैं .
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