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JAGRAN JUNCTION FOURUM केवल पक्ष , विपक्ष का होना …लोकतंत्र की सबसे बडी कमजोरी
भाजपा सशक्त विपक्ष की भूमिका में असफल रही है , इसकी मूल वजह कही न कही लोकतंत्र की यह कमजोरी है जिसमें विपक्ष को तभी सशक्त माना जाता है जब वह हर अच्छे बुरे सरकारी निर्णय का पुरजोर विरोध करे . …………………
विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर (मप्र) मो. 9425806252
कोई भी सभ्य समाज नियमों से ही चल सकता है। जिनहितकारी नियमों को बनाने और उनके परिपालन को सुनिष्चित करने के लिए शासन की आवष्यकता होती है। राजतंत्र, तानाषाही, धार्मिक सत्ता या लोकतंत्र, नामांकित जनप्रतिनिधियों जैसी विभिन्न शासन प्रणालियों में लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र में आम आदमी की सत्ता में भागीदारी सुनिष्चित होती है एवं उसे भी जन नेतृत्व करने का अधिकार होता है। भारत में हमने लिखित संविधान अपनाया है। शासन तंत्र को विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के उपखंडो में विभाजित कर एक सुदृढ लोकतंत्र की परिकल्पना की है। विधायिका लोकहितकारी नियमों को कानून का रूप देती है। कार्यपालिका उसका अनुपालन कराती है एवं कानून उल्लंघन करने पर न्यायपालिका द्वारा दंड का प्रावधान है। विधायिका के जनप्रतिनिधियों का चुनाव आम नागरिको के सीधे मतदान के द्वारा किया जाता है किंतु मेरे मत में इस चुनाव के लिए पार्टीवाद तथा चुनावी जीत के बाद संसद एवं विधानसभाओं में पक्ष विपक्ष की राजनीति लोकतंत्र की सबसे बडी कमजोरी के रूप में सामने आई है।
सत्तापक्ष कितना भी अच्छा बजट बनाये या कोई अच्छे से अच्छा जनहितकारी कानून बनाये विपक्ष उसका विरोध करता ही है। उसे जनविरोधी निरूपित करने के लिए तर्क कुतर्क करने में जरा भी पीछे नहीं रहता। ऐसा केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि वह विपक्ष में है। हमने देखा है कि वही विपक्षी दल जो विरोधी पार्टी के रूप में जिन बातो का सार्वजनिक विरोध करते नहीं थकता था जब सत्ता में आया तो उन्होनें भी वही सब किया और इस बार पूर्व के सत्ताधारी दलो ने उन्हीं तथ्यों का पुरजोर विरोध किया जिनके कभी वे खुले समर्थन में थे। इसके लिये लच्छेदार शब्दो का मायाजाल फैलाया जाता है। ऐसा बार-बार लगातार हो रहा है।
जबकि वास्तविकता यह होती है कि कोई भी सत्तारूढ दल सबकुछ सही या सबकुछ गलत नहीं करता । सच्चा तो लोकतंत्र तो यह होता कि मुद्दे के आधार पर पार्टी निरपेक्ष वोटिंग होती, विषय की गुणवत्ता के आधार पर बहुमत से निर्णय लिया जाता ।
अन्ना हजारे या बाबा रामदेव किसी पार्टी या किसी लोकतांत्रिक संस्था के निर्वाचित जनप्रतिनिधी नहीं है किंतु इन जैसे तटस्थ मनिषियों को जनहित एवं राष्ट्रहित के मुद्दो पर अनषन तथा भूख हडताल जैसे आंदोलन करने पड रहे है एवं समूचा शासनतंत्र तथा गुप्तचर संस्थायें इन आंदोलनों को असफल बनाने में सक्रिय है। यह लोकतंत्र की बहुत बडी विफलता है। अन्ना हजारे या बाबा रामदेव को तो देष व्यापी जनसमर्थन भी मिल रहा है । मेरा मानना तो यह है कि आदर्ष लोकतंत्र तो यह होता कि मेरे जैसा कोई साधारण एक व्यक्ति भी यदि देषहित का एक सुविचार रखता तो उसे सत्ता एवं विपक्ष का खुला समर्थन मिल सकता।
इन अनुभवो से यह स्पष्ट होता है कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में सुधार की व्यापक संभावना है। दलगत राजनैतिक धु्रवीकरण एवं पक्ष विपक्ष से उपर उठकर मुद्दों पर आम सहमति या बहुमत पर आधारित निर्णय ही विधायिका के निर्णय हो ऐसी सत्ताप्रणाली के विकास की जरूरत है। इसके लिए जनषिक्षा को बढावा देना तथा आम आदमी की राजनैतिक उदासीनता को तोडने की आवष्यकता दिखती है। जब ऐसी व्यवस्था लागू होगी तब किसी मुद्दे पर कोई 51 प्रतिषत या अधिक जनप्रतिनिधि एक साथ होगें तथा किसी अन्य मुद्दे पर कोई अन्य 51 प्रतिषत से ज्यादा जनप्रतिनिधि जिनमें से कुछ पिछले मुद्दे पर भले ही विरोधी रहे हो साथ होगें तथा दोनों ही मुद्दे बहुमत के कारण प्रभावी रूप से कानून बनेगें।
क्या हम निहित स्वार्थो से उपर उठकर ऐसी आदर्ष व्यवस्था की दिषा में बढ सकते है एवं संविधान में इस तरह के संषोधन कर सकते है। यह खुली बहस का एवं व्यापक जनचर्चा का विषय है जिसपर स्कूल, कालेज, बार एसोसियेषन, व्यापारिक संघ, महिला मोर्चे, मजदूर संगठन आदि विभिन्न विभिन्न मंचो पर खुलकर बाते होने की जरूरत हैं।
(लेखक को विभिन्न सामाजिक विषयों पर लेखन के लिए राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कार मिल चुके है)
vivek ranjan shrivastava
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